परिचय
मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) की परीक्षा भारत की सबसे प्रतिष्ठित राज्य स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं में से एक है। MPPSC की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए प्राचीन इतिहास एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है जो प्रारंभिक और मुख्य दोनों परीक्षाओं में पूछा जाता है। प्राचीन भारतीय इतिहास में प्रागैतिहासिक काल से लेकर 8वीं शताब्दी तक का इतिहास शामिल है, जिसमें सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक काल, महाजनपद युग, मौर्य साम्राज्य, गुप्त काल जैसे महत्वपूर्ण कालखंड आते हैं।
MPPSC ancient history syllabus में विशेष रूप से मध्य प्रदेश के प्राचीन इतिहास पर भी जोर दिया जाता है। मध्य प्रदेश में भीमबेटका की गुफाएं, सांची का स्तूप, उज्जैन का प्राचीन महत्व, और विदिशा जैसे ऐतिहासिक स्थल इस क्षेत्र की समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं। MPPSC Ancient History Notes MPPSC ancient history notes बनाते समय इन स्थानीय संदर्भों को विशेष महत्व देना आवश्यक है।
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प्राचीन इतिहास का मूल स्वरूप
प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन तीन प्रमुख स्रोतों से किया जाता है – पुरातात्विक स्रोत, साहित्यिक स्रोत और विदेशी यात्रियों के विवरण।
पुरातात्विक स्रोत
पुरातात्विक स्रोतों में अभिलेख, सिक्के, स्मारक, मूर्तियां और भवन शामिल हैं। अशोक के शिलालेख, गुप्त काल के अभिलेख, और विभिन्न राजवंशों के सिक्के महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। मध्य प्रदेश में भीमबेटका की शैलचित्र, सांची के स्तूप, और उदयगिरि की गुफाएं महत्वपूर्ण पुरातात्विक साक्ष्य हैं।
साहित्यिक स्रोत
साहित्यिक स्रोतों में वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, बौद्ध और जैन साहित्य शामिल हैं। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मनुस्मृति, और कालिदास की रचनाएं तत्कालीन समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर प्रकाश डालती हैं।
विदेशी यात्रियों के विवरण MPPSC Ancient History Notes
मेगस्थनीज, फाह्यान, और ह्वेनसांग जैसे विदेशी यात्रियों के विवरण प्राचीन भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को समझने में सहायक हैं।
पाषाण युग – विस्तृत विवरण
पाषाण युग मानव इतिहास का सबसे प्राचीन काल है जब मनुष्य ने पत्थर के औजारों का उपयोग करना शुरू किया। इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है।
- पुरापाषाण काल (Paleolithic Age)
पुरापाषाण काल को प्राचीन पाषाण युग भी कहा जाता है। यह लगभग 5 लाख वर्ष पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व तक रहा। इस काल के लोग शिकारी और खाद्य संग्राहक थे। वे गुफाओं और पेड़ों पर रहते थे और असंसाधित पत्थर के औजारों का उपयोग करते थे।
मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी क्षेत्र में पुरापाषाण काल के महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले हैं। भोपाल के पास भीमबेटका की गुफाएं इस काल की मानव गतिविधियों का प्रमाण हैं। यहां पुरापाषाण काल के हस्तकुठार, विदारक, और अन्य औजार मिले हैं।
पुरापाषाण काल को तीन चरणों में बांटा गया है – निम्न पुरापाषाण (5 लाख – 1 लाख वर्ष पूर्व), मध्य पुरापाषाण (1 लाख – 40,000 वर्ष पूर्व), और उच्च पुरापाषाण (40,000 – 10,000 वर्ष पूर्व)। प्रत्येक चरण में औजारों की तकनीक में सुधार हुआ।
- मध्यपाषाण काल (Mesolithic Age) MPPSC Ancient History Notes
मध्यपाषाण काल 10,000 ईसा पूर्व से 8,000 ईसा पूर्व तक रहा। इस काल में जलवायु परिवर्तन के कारण हिमयुग समाप्त हुआ और वातावरण गर्म हो गया। इस काल की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता सूक्ष्मपाषाण उपकरणों (Microliths) का निर्माण था।
मध्य प्रदेश में विंध्य क्षेत्र के भीमबेटका और आदमगढ़ में मध्यपाषाणिक संस्कृति के महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले हैं। भीमबेटका की शैलचित्रों में मध्यपाषाण काल के शिकार दृश्य, नृत्य, संगीत वाद्ययंत्र, और पशुओं के चित्र मिलते हैं। यहां बाघ, गैंडा, जंगली सूअर, हिरण जैसे जानवरों के चित्र हैं।
इस काल के लोग अभी भी शिकारी और खाद्य संग्राहक थे लेकिन वे अधिक गतिशील हो गए थे। धनुष-बाण का आविष्कार इस काल की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। पालतू कुत्ते के प्रमाण भी मिलते हैं।
- नवपाषाण काल (Neolithic Age)
नवपाषाण काल 8,000 ईसा पूर्व से 4,000 ईसा पूर्व तक रहा। इस काल को नव पाषाण क्रांति भी कहा जाता है क्योंकि इस दौरान मानव जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। कृषि की शुरुआत, पशुपालन, स्थायी निवास, मृदभांड निर्माण, और पॉलिश किए गए पत्थर के औजार इस काल की विशेषताएं थीं। MPPSC Ancient History Notes
मध्य प्रदेश में नवपाषाण काल के साक्ष्य सीमित हैं, लेकिन धीरे-धीरे कृषि प्रथाओं का विस्तार इस क्षेत्र में हुआ। गेहूं, जौ, और दालों की खेती शुरू हुई। मिट्टी के बर्तन बनाने की कला विकसित हुई। भेड़, बकरी, गाय, और सूअर को पालतू बनाया गया।
- ताम्रपाषाण युग (Chalcolithic Age)
ताम्रपाषाण युग में पत्थर और तांबे के औजारों का साथ-साथ उपयोग होता था। यह लगभग 4,000 ईसा पूर्व से 1,500 ईसा पूर्व तक रहा। मध्य प्रदेश में कायथा, एरण, नवदाटोली, और महेश्वर महत्वपूर्ण ताम्रपाषाणिक स्थल हैं। MPPSC Ancient History Notes
कायथा संस्कृति (2,000-1,800 ईसा पूर्व) उज्जैन के पास विकसित हुई और विशिष्ट मृदभांड परंपरा के लिए जानी जाती है। मालवा संस्कृति (1,700-1,300 ईसा पूर्व) पश्चिमी मध्य प्रदेश में फैली थी। इन संस्कृतियों में कृषि, पशुपालन, ताम्र उपकरण, और सुनियोजित बस्तियां थीं।
- भीमबेटका की गुफाएं – विश्व धरोहर स्थल
भीमबेटका रायसेन जिले में स्थित विश्व धरोहर स्थल है जो MPPSC Ancient History Notes MPPSC ancient history के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां 700 से अधिक शैलाश्रय हैं जिनमें से 500 में शैलचित्र हैं। ये चित्र पुरापाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक की मानव गतिविधियों को दर्शाते हैं।
भीमबेटका के शैलचित्र मानव सभ्यता के विकास की निरंतरता को दर्शाते हैं। यहां शिकार दृश्य, युद्ध दृश्य, सामूहिक नृत्य, जानवर, हाथी, घोड़े, मोर, सांप, और मानव आकृतियां चित्रित हैं। चित्रों में प्रयुक्त रंग – लाल, सफेद, पीला, और हरा खनिजों से बनाए गए थे जो हजारों वर्षों से संरक्षित हैं।
यह स्थल दक्षिण एशिया में पाषाण युग के मानव जीवन का सबसे बड़ा भंडार है। यूनेस्को ने 2003 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। MPPSC Ancient History Notes MPPSC ancient history questions में भीमबेटका से संबंधित प्रश्न नियमित रूप से पूछे जाते हैं।
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सिंधु घाटी सभ्यता – विस्तृत विवरण
सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम नगरीय सभ्यताओं में से एक है। इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है क्योंकि सबसे पहले इसकी खोज 1921 में हड़प्पा स्थल पर हुई थी। यह सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक फली-फूली। MPPSC Ancient History Notes
- भौगोलिक विस्तार
सिंधु सभ्यता का विस्तार आधुनिक पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत, और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में था। यह पश्चिम में सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान) से पूर्व में आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक और उत्तर में मांडा (जम्मू) से दक्षिण में दाइमाबाद (महाराष्ट्र) तक फैली थी। यह लगभग 12,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली थी।
- प्रमुख स्थल
हड़प्पा (पंजाब, पाकिस्तान) – दयाराम साहनी ने 1921 में खोजा। यहां अन्नागार, श्रमिक आवास, और ताम्बे की मानव आकृति मिली है।
मोहनजोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान) – राखालदास बनर्जी ने 1922 में खोजा। इसका अर्थ है मृतकों का टीला। यहां महान स्नानागार, अन्नागार, पुरोहित आवास, कांस्य नर्तकी, पशुपति शिव की मुहर, और दाढ़ी वाले पुरोहित की मूर्ति मिली है।
चन्हूदड़ो – यहां मनके बनाने का कारखाना, लिपस्टिक, और कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करने का साक्ष्य मिला है।
लोथल (गुजरात) – यहां गोदीबाड़ा (Dockyard), धान की भूसी, फारस की मुहर, घोड़े की लघु मृण्मूर्ति, और दोहरी शवाधान प्रथा के प्रमाण मिले हैं।
कालीबंगन (राजस्थान) – यहां जुते हुए खेत, अग्निकुंड, भूकंप के प्रमाण, और पूर्व-हड़प्पा और हड़प्पा दोनों संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।
धौलावीरा (गुजरात) – यह सबसे बड़े हड़प्पा स्थलों में से एक है। यहां जलाशय, तीन भागों में विभाजित शहर, और विशाल अक्षरों का साइनबोर्ड मिला है।
राखीगढ़ी (हरियाणा) – यह भारत में सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल है।
बनावली (हरियाणा) – यहां खिलौना हल मिला है जो कृषि का प्रमाण है।
- नगर नियोजन
सिंधु सभ्यता की नगर योजना अत्यंत उन्नत थी। शहर दो भागों में विभाजित थे – दुर्ग (Citadel) और निचला शहर। दुर्ग ऊंचे चबूतरे पर बना था जहां शासक वर्ग और धार्मिक भवन थे। निचले शहर में सामान्य लोग रहते थे।
सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं जिससे ग्रिड पैटर्न बनता था। मुख्य सड़कें 9 से 12 मीटर चौड़ी थीं। घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की बजाय गलियों में खुलते थे।
जल निकासी व्यवस्था अत्यंत विकसित थी। प्रत्येक घर से नालियां सड़कों की मुख्य नालियों से जुड़ी थीं। नालियां ढकी हुई थीं और नियमित अंतराल पर मेनहोल बने थे। यह विश्व की प्राचीनतम सुनियोजित जल निकासी प्रणाली थी।
घर पकी ईंटों से बने थे। मानक ईंट का आकार 4:2:1 के अनुपात में था। अधिकांश घरों में आंगन, रसोई, स्नानागार, और शौचालय थे। कुछ बड़े घरों में कुएं भी थे।
- मोहनजोदड़ो का महान स्नानागार
मोहनजोदड़ो का महान स्नानागार हड़प्पा सभ्यता का सबसे प्रतिष्ठित स्मारक है। यह 12 मीटर लंबा, 7 मीटर चौड़ा, और 2.4 मीटर गहरा है। इसमें उतरने के लिए दोनों ओर सीढ़ियां हैं। स्नानागार पक्की ईंटों से बना है और चूने और जिप्सम के मोर्टार से जलरोधी बनाया गया है।
स्नानागार के चारों ओर कमरे हैं जो संभवतः कपड़े बदलने के लिए थे। इसके पास एक बड़ा कुआं है जो पानी की आपूर्ति करता था। स्नानागार का उपयोग संभवतः धार्मिक स्नान के लिए होता था, जो शुद्धिकरण अनुष्ठानों का संकेत देता है।
- अर्थव्यवस्था
कृषि हड़प्पा अर्थव्यवस्था का आधार थी। गेहूं, जौ, मटर, तिल, सरसों, और कपास की खेती होती थी। लोथल में धान की भूसी मिली है। कालीबंगन में जुते हुए खेत के प्रमाण मिले हैं।
पशुपालन भी महत्वपूर्ण था। बैल, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर, और कुत्ते पालतू थे। हाथी और गैंडा ज्ञात थे। घोड़े के प्रमाण विवादास्पद हैं हालांकि सुरकोटदा और लोथल में कुछ संदिग्ध साक्ष्य मिले हैं।
व्यापार उन्नत था। आंतरिक व्यापार के साथ-साथ मेसोपोटामिया, मध्य एशिया, ईरान, और अफगानिस्तान से विदेशी व्यापार होता था। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा (संभवतः सिंधु क्षेत्र) का उल्लेख है। लोथल का गोदीबाड़ा समुद्री व्यापार का प्रमाण है।
व्यापार में मनके, कपड़ा, धातु की वस्तुएं, सूती कपड़े, और मिट्टी के बर्तन शामिल थे। आयात में सोना (अफगानिस्तान से), चांदी (अफगानिस्तान और ईरान से), तांबा (राजस्थान के खेतड़ी और बलूचिस्तान से), टिन (अफगानिस्तान से), और बहुमूल्य पत्थर शामिल थे। MPPSC Ancient History Notes
मानकीकृत तौल और माप प्रणाली थी। बाट संभवतः 16 के गुणक में थे – 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64 इत्यादि। यह व्यापार की उन्नत स्थिति दर्शाता है।
- शिल्प और उद्योग
कुम्हार के चाक पर बने मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे। लाल और काले रंग के चित्रित मृदभांड विशेष थे। बर्तनों पर ज्यामितीय डिजाइन, पशु-पक्षी, और पौधों के चित्र थे।
मनका उद्योग विकसित था। कार्नेलियन, जैस्पर, क्रिस्टल, फयांस, और सेलखड़ी के मनके बनाए जाते थे। चन्हूदड़ो मनका निर्माण का प्रमुख केंद्र था।
धातु कार्य में कांस्य (तांबा और टिन की मिश्र धातु) का व्यापक उपयोग था। तांबे और कांस्य के औजार, बर्तन, हथियार, और आभूषण बनाए जाते थे। मोहनजोदड़ो की कांस्य नर्तकी उत्कृष्ट धातु शिल्प का उदाहरण है। MPPSC Ancient History Notes
सूती वस्त्र उद्योग विकसित था। यह पहली सभ्यता थी जिसने कपास उगाया और सूती कपड़े बनाए। यूनानियों ने भारतीय कपास को सिंडन कहा।
- सामाजिक जीवन
समाज वर्गों में विभाजित था लेकिन अत्यधिक असमानता नहीं थी। पुरातात्विक साक्ष्यों से शासक वर्ग, पुजारी वर्ग, व्यापारी वर्ग, और श्रमिक वर्ग के संकेत मिलते हैं।
परिवार समाज की मूल इकाई था। मातृसत्तात्मक समाज होने के संकेत मिलते हैं क्योंकि मातृदेवी की पूजा प्रचलित थी।
आभूषण पहनना प्रचलित था। सोने, चांदी, तांबा, हाथी दांत, और मनकों के आभूषण मिले हैं। स्त्री और पुरुष दोनों आभूषण पहनते थे। कांस्य दर्पण, कंघी, और लिपस्टिक जैसी सौंदर्य प्रसाधन वस्तुएं मिली हैं।
मनोरंजन के साधनों में खिलौने, पासे, शतरंज जैसे खेल, नृत्य, और संगीत शामिल थे। मिट्टी के खिलौने, पशु-पक्षी की आकृतियां, गाड़ियां, और बैलगाड़ियां मिली हैं।
- धर्म और धार्मिक प्रथाएं
मातृदेवी की पूजा सबसे प्रमुख थी। अनेक स्थलों से मातृदेवी की मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं जो उर्वरता और प्रकृति की देवी का प्रतिनिधित्व करती हैं।
पशुपति शिव की पूजा होती थी। मोहनजोदड़ो से एक मुहर मिली है जिसमें त्रिमुखी आकृति योग मुद्रा में बैठी है और चारों ओर जानवर हैं। इसे आदि शिव या पशुपति माना जाता है।
प्रकृति पूजा प्रचलित थी। पीपल, नीम जैसे वृक्षों की, जल, पशुओं विशेषकर बैल की, और सांप की पूजा होती थी।
लिंग और योनि पूजा के प्रतीक मिले हैं जो प्रजनन पूजा के संकेत हैं।
मृतक संस्कार में समाधि और दाह संस्कार दोनों प्रचलित थे। शवों को गर्त में रखा जाता था और साथ में बर्तन, आभूषण, और अन्य सामान रखे जाते थे। लोथल में युगल समाधि मिली है।
- लिपि और मुहरें
सिंधु लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। यह भाववाचक (Pictographic) है और दाएं से बाएं लिखी जाती थी। लगभग 400-450 चिह्न ज्ञात हैं। लिपि मुहरों, बर्तनों, और तांबे की गोलियों पर मिलती है।
मुहरें सेलखड़ी (Steatite) की बनी थीं। अधिकांश मुहरें वर्गाकार हैं और पीछे की ओर उभरी हुई पकड़ है। मुहरों पर पशु आकृतियां (एकसींगी बैल, बाघ, हाथी, गैंडा, भैंसा) और लिपि अंकित है। इनका उपयोग संभवतः व्यापार, प्रशासन, और धार्मिक उद्देश्यों के लिए होता था।
सबसे प्रसिद्ध मुहर पशुपति मुहर है जिसमें योगी आकृति है। एकसींगी बैल (Unicorn) MPPSC Ancient History Notes सबसे सामान्य पशु आकृति है।
- **सिंधु सभ्यता का पतन**
सिंधु सभ्यता का पतन लगभग 1900 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व के बीच हुआ। इसके पतन के कई कारण माने जाते हैं:
जलवायु परिवर्तन – पर्यावरणीय बदलाव और वर्षा पैटर्न में परिवर्तन से कृषि प्रभावित हुई।
नदी मार्ग परिवर्तन – सरस्वती नदी का सूखना और सिंधु नदी का मार्ग बदलना।
बाढ़ – बार-बार की बाढ़ से शहरों का विनाश।
आर्य आक्रमण सिद्धांत – मोर्टिमर व्हीलर ने आर्यों के आक्रमण को कारण माना लेकिन यह विवादास्पद है।
आंतरिक कारण – व्यापार मार्गों का बंद होना, प्रशासनिक कमजोरी, और आर्थिक पतन।
महामारी और रोग – संभवतः बीमारियों ने भी भूमिका निभाई।
संभवतः इन सभी कारणों का संयुक्त प्रभाव सभ्यता के पतन में रहा। पतन अचानक नहीं बल्कि धीरे-धीरे हुआ।
MPPSC के लिए सिंधु सभ्यता के महत्वपूर्ण तथ्य
सिंधु सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता थी। यह विश्व की तीन प्राचीन सभ्यताओं – मेसोपोटामिया, मिस्र, और सिंधु में से एक थी। भौगोलिक रूप से यह सबसे बड़ी थी। मेसोपोटामिया में इसे मेलुहा कहा जाता था। कालीबंगन में भूकंप के साक्ष्य मिले हैं जो विश्व के प्राचीनतम भूकंप प्रमाणों में से हैं। लोथल का गोदीबाड़ा विश्व के प्राचीनतम गोदीबाड़ों में से एक है। MPPSC ancient history pyq and MPPSC Ancient History Notes में सिंधु सभ्यता से नियमित प्रश्न पूछे जाते हैं।

वैदिक काल – पूरा विस्तार
वैदिक काल भारतीय इतिहास का वह युग है जब वेदों की रचना हुई। यह लगभग 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक रहा। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है – ऋग्वैदिक काल या प्रारंभिक वैदिक काल (1500-1000 ईसा पूर्व) और उत्तर वैदिक काल (1000-600 ईसा पूर्व)।
ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ईसा पूर्व)
भौगोलिक विस्तार
ऋग्वैदिक आर्य मुख्यतः सप्तसिंधु क्षेत्र (सात नदियों का प्रदेश) में बसे थे। इसमें सिंधु और उसकी सहायक नदियां – झेलम, चेनाब, रावी, व्यास, सतलज, और सरस्वती शामिल थीं। अफगानिस्तान से पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक उनका विस्तार था।
ऋग्वेद में सरस्वती नदी का सर्वाधिक उल्लेख है और इसे नदीतमा (नदियों में सर्वश्रेष्ठ) कहा गया है। सिंधु को सिंधु कहा गया है। गंगा का एक बार और यमुना का तीन बार उल्लेख है।
राजनीतिक संगठन
ऋग्वैदिक समाज जनजातीय था। राजनीतिक इकाई जन (जनजाति) थी जिसका मुखिया राजन या गोप (गोपति) होता था। राजा वंशानुगत होता था लेकिन निरंकुश नहीं था। सभा और समिति नामक जनजातीय परिषदें राजा पर नियंत्रण रखती थीं।
सभा वृद्ध और विद्वान लोगों की परिषद थी। समिति सामान्य जनता की सभा थी जो राजा के चुनाव और महत्वपूर्ण निर्णयों में भूमिका निभाती थी। विदथ सबसे प्राचीन सभा थी जिसमें स्त्रियां भी भाग लेती थीं।
ऋग्वेद में कई जनों का उल्लेख है – भरत, पुरु, यदु, तुर्वस, अनु, द्रुह्यु, त्रित्सु इत्यादि। दशराज्ञ युद्ध (दस राजाओं का युद्ध) परुष्णी (रावी) नदी के तट पर भरत जनजाति के राजा सुदास और दस जनजातियों के संघ के बीच लड़ा गया जिसमें सुदास विजयी हुए।
सामाजिक जीवन
ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था। परिवार समाज की मूल इकाई था। परिवार का मुखिया पिता (गृहपति) होता था। संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी।
वर्ण व्यवस्था का प्रारंभिक रूप था। पुरुष सूक्त (ऋग्वेद का दशम मंडल) में चार वर्णों – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र का उल्लेख है। यह विभाजन कर्म आधारित था और जन्म आधारित नहीं। वर्ण व्यवस्था बाद में कठोर हुई।
महिलाओं को समाज में सम्मानजनक स्थिति प्राप्त थी। वे शिक्षा प्राप्त करती थीं और सभा-समिति में भाग लेती थीं। अपाला, घोषा, लोपामुद्रा जैसी विदुषी महिलाओं ने वैदिक सूक्तों की रचना की। विवाह संस्कार महत्वपूर्ण था। बाल विवाह नहीं था। विधवा पुनर्विवाह की अनुमति थी।
आर्य मांसाहार और शाकाहार दोनों करते थे। सोमरस एक प्रिय पेय था। जुआ और रथ दौड़ मनोरंजन के साधन थे। संगीत और नृत्य लोकप्रिय थे।
आर्थिक जीवन
ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था मुख्यतः पशुचारण पर आधारित थी। गाय सबसे महत्वपूर्ण पशु थी और धन की इकाई थी। युद्ध गायों को प्राप्त करने के लिए लड़े जाते थे। गाय को अघन्या (न मारने योग्य) कहा गया है। MPPSC Ancient History Notes
कृषि गौण व्यवसाय था। यव (जौ) मुख्य फसल थी। हल को लांगल कहा जाता था और बैलों से खींचा जाता था। वर्षा पर निर्भरता थी और सिंचाई सीमित थी।
व्यापार का सीमित विकास था। वस्तु विनिमय प्रणाली थी। कुछ व्यापारी (पणि) थे जो व्यापार करते थे। निष्क नामक स्वर्ण आभूषण को विनिमय में प्रयोग किया जाता था।
धातुकर्म में तांबे और कांस्य का ज्ञान था। लोहे का ज्ञान नहीं था। बढ़ई, रथकार, कुम्हार, बुनकर, चर्मकार जैसे शिल्पकार थे।
धार्मिक जीवन
ऋग्वैदिक धर्म प्रकृति पूजा पर आधारित था। देवताओं को प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण माना जाता था। मुख्य देवता इंद्र, अग्नि, वरुण, सूर्य, उषा, मरुत, रुद्र, पूषन, सोम थे।
इंद्र सबसे लोकप्रिय देवता थे। उन्हें पुरंदर (किलों का नाश करने वाला) कहा गया। वे युद्ध और वर्षा के देवता थे। ऋग्वेद में उनके लिए 250 सूक्त हैं। वृत्र और शुष्ण राक्षसों के वध का श्रेय उन्हें दिया गया।
अग्नि दूसरे सबसे महत्वपूर्ण देवता थे। वे देवताओं और मनुष्यों के बीच मध्यस्थ थे। आहुतियां अग्नि के माध्यम से देवताओं तक पहुंचती थीं।
वरुण ऋत (ब्रह्मांडीय व्यवस्था) के रक्षक और नैतिक आचरण के देवता थे। वे सर्वज्ञ और सर्वव्यापी माने गए।
पूजा पद्धति सरल थी। यज्ञ और स्तुति द्वारा देवताओं की पूजा होती थी। जटिल अनुष्ठान नहीं थे। मंदिर और मूर्ति पूजा नहीं थी। पुरोहित वर्ग था लेकिन बहुत शक्तिशाली नहीं था।
उत्तर वैदिक काल (1000-600 ईसा पूर्व)
उत्तर वैदिक काल में भारतीय समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। यह काल सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, और उपनिषद की रचना का काल था।
भौगोलिक विस्तार
आर्यों का विस्तार पूर्व की ओर हुआ। वे गंगा-यमुना दोआब, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, और बंगाल तक फैल गए। कुरु-पांचाल और विदेह महत्वपूर्ण क्षेत्र बने। मध्य प्रदेश का अवंति क्षेत्र भी आर्य संस्कृति के प्रभाव में आया। MPPSC Ancient History Notes
शतपथ ब्राह्मण में विदेघ माधव द्वारा आर्यों के पूर्व की ओर विस्तार का वर्णन है। सदानीरा (गंडक) नदी को आर्य विस्तार की पूर्वी सीमा बताया गया है।
राजनीतिक परिवर्तन
जनजातीय व्यवस्था से राज्य व्यवस्था की ओर परिवर्तन हुआ। छोटे जन बड़े राज्यों में विलीन हुए। राजा की शक्ति बढ़ी और वे अधिक निरंकुश हुए।
राजा को क्षत्रिय वर्ण का होना आवश्यक हो गया। वे सम्राट, विराट, स्वराट, एकराट जैसी उपाधियां धारण करने लगे। राजसूय, अश्वमेध, और वाजपेय जैसे यज्ञ राजसत्ता को वैधता प्रदान करते थे।
सभा और समिति की शक्ति कम हुई। अथर्ववेद में इन्हें राजा के दो पुत्रियां कहा गया जो इनकी स्थिति में गिरावट दर्शाता है।
प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या बढ़ी। पुरोहित, सेनानी, ग्रामणी, महिषी जैसे अधिकारी थे। रत्निन् नामक 12 पदाधिकारियों का उल्लेख है।
कुरु, पांचाल, कोसल, विदेह, मगध प्रमुख राज्य थे। कुरु-पांचाल क्षेत्र ब्राह्मणवादी संस्कृति का केंद्र बना।
सामाजिक परिवर्तन
वर्ण व्यवस्था कठोर हो गई। चार वर्णों के बीच की दूरी बढ़ी। जन्म के आधार पर वर्ण निर्धारण होने लगा। ब्राह्मणों की स्थिति सर्वोच्च हो गई। शूद्रों की स्थिति गिर गई और उन्हें सेवा कार्य तक सीमित कर दिया गया।
जाति व्यवस्था का विकास हुआ। वर्णों के भीतर उप-विभाजन से जातियों का जन्म हुआ। विभिन्न व्यवसायों के आधार पर अनेक जातियां बनीं।
गोत्र प्रथा का विकास हुआ। एक ही पूर्वज से उत्पन्न परिवारों का समूह गोत्र कहलाता था। सगोत्र विवाह निषिद्ध हो गया।
महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई। शिक्षा और धार्मिक अनुष्ठानों में उनकी भागीदारी कम हुई। बाल विवाह शुरू हुआ। उपनयन संस्कार से महिलाओं को वंचित किया जाने लगा।
दास प्रथा अधिक व्यापक हुई। युद्ध बंदियों और ऋणग्रस्त लोगों को दास बनाया जाता था।
आर्थिक विकास
कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था हो गई। लोहे के औजारों के उपयोग से कृषि में क्रांति आई। जंगलों को साफ कर कृषि भूमि में परिवर्तित किया गया। गंगा के मैदान की उर्वर भूमि में खेती का विस्तार हुआ।
चावल, गेहूं, जौ, मसूर, मूंग, तिल, सरसों की खेती होती थी। बारह महीने की फसल चक्र व्यवस्था विकसित हुई।
पशुपालन का महत्व कम हुआ लेकिन गाय का महत्व बना रहा। घोड़े प्रतिष्ठा के प्रतीक बने।
व्यापार और वाणिज्य का विकास हुआ। सुदूर व्यापार की शुरुआत हुई। निष्क, कृष्णल, शतमान जैसे मुद्रा मानक विकसित हुए।
शिल्प और उद्योग विकसित हुए। बढ़ई, लुहार, कुम्हार, जुलाहे, रथकार, स्वर्णकार जैसे विशिष्ट शिल्पकार वर्ग बने। श्रेणी (गिल्ड) संगठन का विकास हुआ।
धार्मिक परिवर्तन
धर्म अधिक कर्मकांडी हो गया। यज्ञ और अनुष्ठान जटिल हो गए। पुरोहित वर्ग की शक्ति बढ़ी। ब्राह्मणों ने धार्मिक कर्मकांडों पर एकाधिकार स्थापित कर लिया।
इंद्र का महत्व कम हुआ। प्रजापति, विष्णु, और रुद्र महत्वपूर्ण देवता बने। ब्रह्मा सृष्टिकर्ता के रूप में उभरे।
यज्ञों का महत्व बढ़ा। अश्वमेध, राजसूय, वाजपेय जैसे विस्तृत यज्ञ राजाओं द्वारा किए जाने लगे। यज्ञों में पशु बलि सामान्य हो गई।
उपनिषदों में दार्शनिक चिंतन का विकास हुआ। आत्मा, ब्रह्म, पुनर्जन्म, कर्म सिद्धांत जैसी अवधारणाएं विकसित हुईं। ज्ञान मार्ग को महत्व मिला।
कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत विकसित हुआ। जन्म-मरण के चक्र (संसार) और मोक्ष की अवधारणा बनी।
वैदिक साहित्य
वेद – चार वेद हैं: ऋग्वेद (स्तुतियों का संग्रह), सामवेद (गायन के मंत्र), यजुर्वेद (यज्ञ की प्रक्रियाएं), और अथर्ववेद (जादू-टोना और रोजमर्रा जीवन)।
ब्राह्मण – वेदों की व्याख्या करने वाले गद्य ग्रंथ। ऐतरेय और शतपथ ब्राह्मण प्रमुख हैं।
आरण्यक – वन में रहने वाले संन्यासियों के लिए रचे गए।
उपनिषद – दार्शनिक ग्रंथ जो आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान पर केंद्रित हैं। 108 उपनिषद हैं जिनमें ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक प्रमुख हैं।
वेदांग – वेदों के छह अंग – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, और ज्योतिष।
MPPSC के लिए वैदिक काल के महत्वपूर्ण बिंदु
ऋग्वैदिक काल में लोहे का प्रयोग नहीं था जबकि उत्तर वैदिक काल में लोहे को श्याम अयस कहा गया। गायत्री मंत्र ऋग्वेद में है। अथर्ववेद में जादू-टोने और औषधियों का वर्णन है। पुरुष सूक्त में वर्ण व्यवस्था का उल्लेख है। MPPSC ancient history questions in hindi , MPPSC Ancient History Notes में वैदिक काल से संबंधित प्रश्न नियमित रूप से पूछे जाते हैं।
महाजनपद युग
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में उत्तर भारत में सोलह महान राज्य या महाजनपद अस्तित्व में आए। बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय में इन सोलह महाजनपदों की सूची है। यह काल भारतीय इतिहास में द्वितीय नगरीकरण का युग था।
सोलह महाजनपद
काशी – वाराणसी इसकी राजधानी थी। यह व्यापार और शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था।
कोसल – श्रावस्ती और साकेत इसकी राजधानियां थीं। यह अयोध्या क्षेत्र में था। राजा प्रसेनजित प्रसिद्ध शासक थे।
अंग – चंपा इसकी राजधानी थी। यह आधुनिक भागलपुर और मुंगेर क्षेत्र में था।
मगध – राजगृह और बाद में पाटलिपुत्र इसकी राजधानी थी। बिंबिसार, अजातशत्रु जैसे महत्वाकांक्षी शासक थे। यह सबसे शक्तिशाली महाजनपद बना।
वृजि – वैशाली इसकी राजधानी थी। यह गणतांत्रिक व्यवस्था वाला महाजनपद था। लिच्छवि इसकी प्रमुख जनजाति थी।
मल्ल – कुशीनगर और पावा इसके दो भाग थे। यह भी गणतंत्र था।
चेदि – शक्तिमती (आधुनिक बांदा क्षेत्र) इसकी राजधानी थी।
वत्स – कौशाम्बी इसकी राजधानी थी। यह इलाहाबाद के पास यमुना के तट पर था। उदयन प्रसिद्ध राजा थे।
कुरु – इंद्रप्रस्थ इसकी राजधानी थी। यह दिल्ली और मेरठ क्षेत्र में था।
पांचाल – अहिच्छत्र और कांपिल्य इसकी दो राजधानियां थीं। यह रुहेलखंड क्षेत्र में था।
मत्स्य – विराटनगर इसकी राजधानी थी। यह जयपुर के दक्षिण में था।
शूरसेन – मथुरा इसकी राजधानी थी। अवंतीपुत्र प्रसिद्ध शासक थे।
अश्मक – पोटली या पोतन इसकी राजधानी थी। यह गोदावरी नदी के तट पर एकमात्र दक्षिण भारतीय महाजनपद था।
अवंति – उज्जयिनी और महिष्मती इसकी राजधानियां थीं। यह मध्य प्रदेश में था। मगध के साथ प्रतिद्वंद्विता थी।
गांधार – तक्षशिला इसकी राजधानी थी। यह पश्चिमोत्तर सीमा पर आधुनिक पाकिस्तान और अफगानिस्तान में था। पुष्कलावती इसका दूसरा महत्वपूर्ण नगर था।
कंबोज – पोण इसकी राजधानी थी। यह हिंदुकुश क्षेत्र में था।
अवंति महाजनपद और मध्य प्रदेश
अवंति महाजनपद MPPSC ancient history , MPPSC Ancient History Notes के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मध्य प्रदेश में स्थित था। यह दो भागों में विभाजित था – उत्तरी अवंति की राजधानी उज्जयिनी (आधुनिक उज्जैन) और दक्षिणी अवंति की राजधानी महिष्मती (आधुनिक महेश्वर) थी।
उज्जयिनी मालवा पठार पर शिप्रा नदी के तट पर स्थित एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र था। यह उत्तर से दक्षिण भारत जाने वाले व्यापार मार्ग पर स्थित था। महिष्मती नर्मदा नदी के तट पर स्थित था।
अवंति के शासकों में चंड प्रद्योत महत्वपूर्ण थे। वे महत्वाकांक्षी थे और मगध के साथ प्रतिद्वंद्विता में थे। बौद्ध ग्रंथों में प्रद्योत का वर्णन गौतम बुद्ध के समकालीन के रूप में मिलता है।
अवंति ने कई युद्ध मगध के विरुद्ध लड़े। हालांकि अंततः शिशुनाग वंश के शासन में मगध ने अवंति को जीत लिया और अपने साम्राज्य में मिला लिया।
उज्जयिनी बौद्ध धर्म और जैन धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र बना। यह शिक्षा और संस्कृति का भी प्रमुख केंद्र था। कालिदास ने अपनी रचना मेघदूत में उज्जयिनी की सुंदरता का वर्णन किया है।
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